जय गुरु गोरखनाथ, सदा सहाय ।
करहु कृपा जोरि जन पर, निसदिन हमारहि आहि गवाय ॥
जो कोई निन्दा करहि हमारी, सो नर चहिं सुधि माहि ।
ज्ञान बिना संतति नहिं कोई, जग में न भव भय काहि ॥१॥
जिन्ह की बिगटि कीन्ह कोई नहीं, साधक कहवाइ जाय ।
गोरखनाथ गुरु साधिक कीन्हा, सहज जोग लगायि ॥२॥
शंकर अचल राजा जोगी, जटाधार ब्रह्मा आधिक ।
तिन्ह को प्रणाम करहिं हम, तन मन धन जीवन अधिक ॥३॥
मन को संयम राखि लो, काम क्रोध अधिकारी ।
जिन्ह की पूजा मन से की, सब काम पुरारी ॥४॥
स्वामी बलवंत गोरख नाथ, चलत है जगत त्राणा ।
कैसी बड़ा भगतिहि होई, जित दृढ़ निश्चय नाम लगाया ॥५॥
महादेव की कृपा दृढ़ाई, गोरख नाथ अधिकारी ।
अभिमान निवारि संत सदन, भक्ति अनधिकारी ॥६॥
संत जन साधन जो न कीन्हा, ताकू जीवन अभागा ।
बिनु सत्संग के नहिं लाभा, उबरेंगे कौन दुखी भागा ॥७॥
गुरु गोरख चरन कमल, जिन्ह की ध्यान सुख धारी ।
देव धनवंत जन जीवा, सुनहु मेरी भवारी ॥८॥
अर्थ - सदा हमारे सहारे होने वाले गुरु गोरखनाथ को जय हो। हे जोगी राजा शंकर, जटाधारी ब्रह्मा, हम उनको प्रणाम करते हैं। वे हमारी रक्षा करने वाले हैं। वे सबका उद्धार करते हैं। गुरु गोरखनाथ के पावन चरणों को ध्यान में ले जो सुख की धारा बहा रहे हैं, वे देवों के समान धनवान और सुखी होते हैं। मेरी सुनो, हे भवानी, मेरे गुरु गोरखनाथ के पावन चरण।
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