जय माता दी
Sunny Nath Sharma
षष्ठी नवरात्रि– मां कात्यायनी
मां कात्यानी व्रत कथा–
नवरात्रि के छटे दिन इन्ही देवी की पूजा अर्चना करने का विधान है। यह देवी अर्थ,काम,धर्म,मोक्ष की प्राप्ति कराती है। कात्य गोत्र के महर्षि कात्यानन ने देवी पराम्बा की पूजा अर्चना करी थी व उनसे अपनी पुत्री के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद लिया था।
तब माता उनके घर उनकी पुत्री के रूप में प्रकट हुए,इसलिए ही माता का नाम कात्यानी पड़ा।
ब्रज की गोपियों ने श्री कृष्णा को पति रूप में पाने के लिए भी इन्ही देवी की पूजा अर्चना करी थी।
मां कात्याननी का स्वरूप–
इनकी चार भुजाएं हैं।दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है ।मां के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले
हाथ में कमल का फूल है। इनका वाहन सिंह है।
मां कात्यानी का मंत्र–
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।
मां कात्यानी की आरती–
जय जय अम्बे, जय कात्यायनी।
जय जगमाता, जग की महारानी।
बैजनाथ स्थान तुम्हारा।
वहां वरदाती नाम पुकारा।
कई नाम हैं, कई धाम हैं।
यह स्थान भी तो सुखधाम है।
हर मंदिर में जोत तुम्हारी।
कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी।
हर जगह उत्सव होते रहते।
हर मंदिर में भक्त हैं कहते।
कात्यायनी रक्षक काया की।
ग्रंथि काटे मोह माया की।
झूठे मोह से छुड़ाने वाली।
अपना नाम जपाने वाली।
बृहस्पतिवार को पूजा करियो।
ध्यान कात्यायनी का धरियो।
हर संकट को दूर करेगी।
भंडारे भरपूर करेगी।
जो भी मां को भक्त पुकारे।
कात्यायनी सब कष्ट निवारे।
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