बहुत लोग माता रानी की अखंड ज्योत लगाते हैं, कुछ लोग रोज अपने मंदिर में दिया लगाते हैं, और कुछ लोग किसी अनुष्ठान के लिए दीप प्रज्वलित करते हैं।इसमें ध्यान देने वाली बात होती है कि उस दीपक की बत्ती में फूल बन जाता है। कभी कभी इसका आकार चंद्रमा जैसा भी होता है। इसका रहस्य बहुत गूढ़ है।जिस देवता की पूजा होगी, जिसके नाम से दीपक प्रज्वलित किया गया होगा, उसका ही चिन्ह बन सकता है।
जरूरी नहीं की ऐसा ही कुछ हो।
कभी कभी दीपक की लौ भी बिना हवा के लहराती है। यह भी एक संकेत है कि इष्ट प्रसन्न हैं। ज्योति में से पटाखे की आवाज सुनाई दे तो समझ जाएं कि इष्ट उस समय हाजिर हैं।मान लीजिए महादेव के लिए दीपक लगाया है किसी ने तो उसमे नंदी बैल नही बनेगा। लेकिन उसमे महादेव की कृपा से एक विशेष तेज और प्रकाश होगा और वो दीपक सामान्य समय से कुछ देर अधिक तक चलेगा। हो सकता है उस दीप में महादेव के धारण किए गए चंद्रमा की आकृति बन जाए।
ज्यादातर मां भगवती की आराधना में एक बहु बड़ा सा सुंदर, बिना बिखरा हुआ फूल बन जाता है। यह अनुभव मां की असीम अनुकम्पा से ही होता है। बहुत चमत्कार होते हैं, कभी कभी मां की दिव्य ज्योति में मां नैना देवी साक्षात नयन स्वरूप में आती हैं, उस समय भक्त को मां की स्तुति करनी चाहिए। कोई मंत्र न आता हो तो
महामाई का जयकारा ही लगा देना चाहिए।बहुत बार जगरातों में मां भगवती की सच्ची ज्योत में "मां" शब्द भी प्रकट हो जाता है। जिसको विश्वास होता है वो करते हैं और जिनको नही होता वो इसको अंधविश्वास के कर टाल देते हैं पर जो सच है वो तो सच ही है।
पुराणों में इस से जुड़ी कोई बात नही कही गई, न ही ऐसा है की ये फूल बनना ही बनना चाहिए।
अगर तेल, घी या बत्ती की रुईं में भी फरक हुआ तब भी नही बन सकता लेकिन खुद के अनुभव के हिसाब से अगर फूल नहीं बनते और पहले बनते थे, तो या तो किसी देवता का भोग नहीं दिया या भक्ति में कमी आई है, या फिर कोई अपवित्र इंसान का घर में आना हुआ था या फिर अशुद्ध हाथ से ही पावन ज्योति को स्पर्श किया गया है।
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