पंर धाम पंर ब्रह्म परेशं परमीशवरम
विघ्ननिघ्नकरं शांन्त पुष्टं कान्तमनन्तकम।।
सुरासुरेन्द्रैःसिद्धेंन्द्रेः स्तुतं स्तौमि परात्परम
सुरपदमदिनेशं च गणेशं मंगलायनम।।
इदं स्तोत्रं महापुण्यं विघ्नशोकहरं परम।
यः पठेत प्रातरूथाये सर्वविघ्नात प्रमुच्यते।।
अर्थात- वह देव जो परमधाम,परब्रह्म, परेश,परम ईशवर,विघ्नों के विनाशक,शान्त,पुष्ट,मनोहर और अनंत हैं।वह देवरूपी कमल के लिए सूर्य और मंगलो के लिए आश्रय स्थान हैं। उन महागणेश की मैं स्तुति करता हूँ। ये स्तोत्र महान,पुण्यमय,विघ्न और शोक को हरने वाला है। जो प्रातः काल है स्तोत्र का विधिपूर्वक पाठ करता है वह संपूर्ण विघ्नों से मुक्त हो जाता है।
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