प्रत्यक्ष दर्शन कैसे होते हैं?
प्रत्यक्ष का मतलब होता है बिल्कुल सामने। भगवान के दर्शन करने के लिए इतना सामर्थ्य भी होना चाहिए की करोड़ों ब्रह्मांडो के सूर्यों जितना तेज खुद में जगाया जाए।
उस प्रकाश को इंसानी शरीर की ये 2 छोटी छोटी आंखें नहीं देख सकती।
जब कोई एक मिनट तक 1 सूर्य को लागतार टकटकी लगा कर नही देख सकता तो एक करोड़ से भी ज्यादा तेज वाले उस भगवान को 1 सेकेंड भी कैसे ही देख सकेंगे?
महाभारत में जब श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपना दिव्य रूप दिखाना था तब इंद्र के अंश अर्जुन को भी श्री कृष्ण ने दिव्य नेत्र दिए थे। अब आप खुद सोचो की अगर इंद्रपुत्र अर्जुन, जो कृष्ण जी के भाई थे, जिनका निशाना पक्का था, जो इंद्र के पुत्र थे, उनको भी कृष्ण ने दिव्य नेत्र दिए तो आज कल के समय में किस के पास ही इतनी क्वालिफिकेशन होगी।
साक्षात दर्शन कभी भी देवता के मुखमंडल के हो ही नही सकते। चरणों की झलक पड़ सकती है लेकिन वो भी कभी ही।
राम कृष्ण परमहंस जी जो महाकाली माता दक्षिणेश्वरी के परम प्रिय भक्त हुए उनके हाथ से मां भोग स्वीकार करने आती थी, साक्षात स्वरुप में, क्यों? क्योंकि उनका प्रेम भाव सच्चा था।
जरूरी नहीं की देवता की भक्ति के लिए मंत्र तंत्र की क्रिया आती हो। किसी नए जन्मे बच्चे को जब भूख लगती है तब वो मुंह से बोल कर नही कहता की भूख लगी है। उसका रोना ही उसकी मां के लिए संकेत होता है। बस इस ही तरह देवी देवता या श्री भगवान के प्रति प्रेम भाव ही उनको विवश कर देता है।
साक्षात देवी भगवती प्रकट हो कर किसी के नवरात्रे में कन्या भोज पर जाए तो बाकी सबको लगेगा की मां अन्याय करती है लेकिन उस ही देवी महामाया की अंश 10 वर्षीय कन्या को भोजन करवा कर सब मातारानी की ही कृपा समझते हैं।
जैसे अंग्रेजी में कहते हैं की god could not be present everywhere so he made parents, उस ही के तरह सब जगह माता पिता ही भगवान हैं, साक्षात भगवान।
वैदिक सनातन धर्म में तो माता पिता और गुरु को भगवान से भी बड़ा बताया गया है।
जरूरी नहीं की नारायण शंख चक्र ले कर आपके सामने आए, या शंकर त्रिशूल लेकर खड़े हों। ये माया के रूप में आपको दर्शन देने भी आ सकते हैं।
इस लिए गुरु, माता पिता और प्रकृति का सम्मान करते रहो, कभी न कभी भगवान की कृपा हो सकती है।
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