नवम नवरात्रि–मां सिद्धिदात्री मां सिद्धिदात्री की व्रत कथा–

जय माता दी

Sunny Nath Sharma

       नवम नवरात्रि–मां सिद्धिदात्री

मां सिद्धिदात्री की व्रत कथा–

देवीपुराण के अनुसार ये माता सभी सिद्धियां प्रदान करने में समर्थ है।भगवान शंकर ने भी इन्ही देवी की उपासना करके सभी सिद्धियों को प्राप्त कर था।इन्ही देवी के आशीर्वाद से भगवान शिव का शरीर आधा स्त्री का हुआ था तथा वह जग में अर्धनारीश्वर के रूप से विख्यात हुए। माता सिद्धिदात्री की पूजा नवरात्रि के अंतिम दिन होती है। माता की कृपा प्राप्त करने के बाद कोई शेष इच्छा भक्तो के मन में नही बचती है।

मां सिद्धिदात्री का स्वरूप–

मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है। ये कमल पुष्प पर आसित होती हैं।

मां सिद्धिदात्री का मंत्र–

या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:
: “ॐ सिद्धिदात्री देव्यै नमः”

मां सिद्धिदात्री की आरती–

जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता
तू भक्तों की रक्षक  तू दासों की माता, 
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि
कठिन  काम  सिद्ध  कराती  हो  तुम
हाथ  सेवक  के  सर  धरती  हो  तुम,
तेरी  पूजा  में  न  कोई  विधि  है
तू  जगदंबे  दाती  तू  सर्वसिद्धि  है
रविवार  को  तेरा  सुमरिन  करे  जो
तेरी  मूर्ति  को  ही  मन  में  धरे  जो, 
तू  सब  काज  उसके  कराती  हो  पूरे
कभी  काम  उस  के  रहे  न  अधूरे
तुम्हारी  दया  और  तुम्हारी  यह  माया
रखे  जिसके  सर  पैर  मैया  अपनी  छाया,
सर्व  सिद्धि  दाती  वो  है  भाग्यशाली
जो  है  तेरे  दर  का  ही  अम्बे  सवाली
हिमाचल  है  पर्वत  जहां  वास  तेरा
महानंदा मंदिर में है वास  तेरा,
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता
वंदना है सवाली तू जिसकी दाता

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