जय माता दी
Sunny Nath Sharma
तृतीय नवरात्रि–मां चंद्रघंटा
मां चंद्रघंटा व्रत कथा–
एक बार की बात है की महिषासुर राक्षस ने पृथ्वी पर बहुत आतंक मचा रखा था। उनसे देवताओं को बहुत ही परेशान कर रखा था। वह राजा इंद्र का सिंहासन पाना चाहता था। इसी बात से चिंतित होकर राजा इंद्र व अन्य देवतागण त्रिदेव की शरण में गए। शिवजी,ब्रह्मा जी तथा विष्णु जी ने जब यह सब सुना तो वह गुस्से से भर गए। त्रिदेवों के मुख से तब एक ऊर्जा उत्पन हुई,उसी से माता का अवतरण हुआ।माता को शिवजी भगवान जी ने अपना त्रिशूल,ब्रह्मा जी ने कमंडल,
व विष्णु जी ने अपना चक्र प्रदान करा। माता ने युद्ध में महिषासुर को मार गिराया। इससे सभी देवी देवताओं में खुशी का माहौल बन गया व सभी देवताओं ने माता का शुक्रिया कर उनका आशीर्वाद लिया।
मां चंद्रघंटा का स्वरूप–
माता के माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है। इनका स्वरूप अत्यंत ही शांतिप्रदायक है।
मां चंद्रघंटा का मंत्र -
पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
मां चंद्रघंटा की आरती–
जय मां चंद्रघंटा सुख धाम
पूर्ण कीजो मेरे काम
चंद्र समान तू शीतल दाती
चंद्र तेज किरणों में समाती
क्रोध को शांत बनाने वाली
मीठे बोल सिखाने वाली
मन की मालक मन भाती हो
चंद्र घंटा तुम वरदाती हो
सुंदर भाव को लाने वाली
हर संकट मे बचाने वाली
हर बुधवार जो तुझे ध्याये
श्रद्धा सहित जो विनय सुनाय
मूर्ति चंद्र आकार बनाएं
सन्मुख घी की ज्योत जलाएं
शीश झुका कहे मन की बाता
पूर्ण आस करो जगदाता
कांची पुर स्थान तुम्हारा
करनाटिका में मान तुम्हारा
नाम तेरा रटू महारानी
'भक्त' की रक्षा करो भवानी
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