मंगलकारी गणेश चतुर्थी कथा (GANPATI JIKI MANGLAKARI GANESH CATHURTHI KATHA )

मंगलकारी गणेश चतुर्थी कथा


जय गणपति,गणनायक जय हो,जन मन मंगल त्राता।
एक रदन,गजवदन,विनायक,चतुर्थी के दिन आता।।

भगवान श्री गणेश जी का जन्म भाद्रपद मास की शुकल पक्ष चतुर्थी को रात के पहले पहर में हुआ था, इसलिये ये दिन गणेश चतुर्थी कहलता है। वाल्यकाल में जब भगवान शिव ने त्रिशूल से उनका सिर भेदन किया था,तब मां पार्वती की एकत्रित एंव उत्पन्न शक्तीयो ने प्रलय मचा दिया था।भगवान शिव उसी समय भगवान विष्णु के पास पहूँचे और उनकी सहायता से हाथी के शिशु का सिर श्री गणेश जी के धड पर लगा दिया और अमृत वर्षा करके उन्हें जीवित कर दिया था।

                    महादेव शंकर ने उनहें अपना पुत्र स्वीकार करते हुए अनेक वर दिए। उन्हे यह भी वर दिया था जो भी भक्तगण पूजा अर्चना करते समय सर्वप्रथम उनके पुत्र गणेश का पूजन करेगा,उसकी पूजा या अन्य धार्मिक कार्य निर्विघ्नम सम्पूर्ण होंगे। इसलिए गणेश जी देवों के देव कहलाए और मंगल व सिद्धि दाता बने। इसके साथ ही शिव जी ने उन्हें यह वर भी दिया था कि जो भक्त तुम्हारे जन्म तिथि अर्थात् गणेश चतुर्थी के दिन तुम्हारा पूजन एंव व्रत करेगा उसे सभी रिद्धि और सिद्धि प्राप्त होगी। भगवान शिव ने शिव पुराण में भी इसका उल्लेख किया है जो भक्त श्रद्धा,भक्ति और विश्वास के साथ गणेश चतुर्थी का व्रत पूजा अर्चना सहस्त्ररनाम से करेगा उसके सभी विघ्नो का नाश होगा और मनोकामना सिद्ध होगी। 

       गणेश चतुर्थी का व्रत स्त्रियों के लिए काफी महत्वपूर्ण है । स्त्रियों को भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी,कार्तिक कृष्ण चतुर्थी,माघ कृष्ण चतुर्थी के व्रत करने चाहिए,इन्हे बहुला चौथ,करवा चौथ और संकट चौथ  कहते हैं।इस दिन गणपति के सहस्त्रनाम का पाठ करने वाली स्त्रियो को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं।

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