पूर्वकाल में शिलाद नामक एक धर्मात्मा मुनि ने अपने पितरों के आदेश से मृत्युहीन एवं अयोनिज पुत्र की कामना से भगवान शिव की कठोर तपस्या की|
शीघ्र प्रसन्न हो जाने वाले भगवन महादेव उनके तप से प्रसन्न हुए और साक्षात प्रकट होकर उनसे वर मांगने के लिए कहा.
“ऋषिवर! मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं वर मांगो|”
शिलाद मुनि बोले – “भगवन्! यदि आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं तो यह वर दीजिए कि मुझे आपके समान ही मृत्युहीन अयोनिज पुत्र प्राप्त हो|”
भगवान शिव ने कहा – “हे तपोधन विप्र! हालांकि मैं जगत का पिता हूं, तो भी मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर कहता हूं कि मैं तुम्हारे अयोनिज पुत्र के रूप में अवतार लूंगा और उस अवतार में मेरा नाम नंदी होगा|”
ऐसा कहकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए|
कुछ समय बाद यज्ञवेत्ताओं में श्रेष्ठ शिलाद मुनि यज्ञ करने के लिए यज्ञ क्षेत्र जोत रहे थे कि उसी समय उनके स्वेद बिंदु (पसीने की बूंद) से एक पुत्र उत्पन्न हुआ|
वह बालक सूर्य के समान प्रभाशाली, त्रिनेत्र, जटा, मुकुटधारी, त्रिशूल आदि से युक्त तथा चतुर्भुज रूद्र के रूप में मुनि को दिखाई दिया|
उसे देखते ही शिलाद मुनि को बड़ी प्रसन्नता हुई| वे बालक को अपनी कुटिया में ले गए जहां जाकर बालक ने साधारण मनुष्य का रूप धारण कर लिया|
मुनि बड़े ही प्यार से उसका पालन-पोषण करने लगे| उन्होंने उसके जात-कर्म आदि करवाकर उसका नाम नंदी रखा|
बालक पांच वर्ष की आयु तक सभी वेदों व शास्त्रों का ज्ञाता हो गया| सातवां वर्ष पूरा हुआ तो वहां दो मुनि मिलने आए|
उनमें से एक का नाम मित्र था, दूसरे का नाम वरुण| उन्होंने मुनि शिलाद को बताया कि आपके पुत्र की आयु मात्र एक वर्ष शेष है|
यह जानकर मुनि शिलाद चिंतित हो उठे| नंदी ने उन्हें ढाढ़स बंधाया|
उसने आत्मविश्वास पूर्वक अपने पिता से कहा – पिताश्री! आप चिंतित न हों, यमराज मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा| शिव काल के भी काल हैं| मैं भगवान शिव की आराधना करूंगा और उसके प्रभाव से मृत्यु पर विजय पाऊंगा|
ऐसा कहकर नंदी वन को चले गए और भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए तपस्या की|
उन्होंने तीन नेत्र, दस भुजा व पांच मुखवाले भगवान सदाशिव का ध्यान लगाया तथा रूद्र मंत्र का जाप किया|
उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव व मां पार्वती प्रकट हुए|
उन्होंने नंदी से कहा – शिलादनंदन! तुमने बड़ा ही उत्तम तप किया है| मैं तुम्हारी इस तपस्या से परम संतुष्ट हूं| तुम्हारे मन में जो अभीष्ट हो मांग लो|
नंदी भाव-विभोर होकर उनके चरणों में लेट गए|
तब शिव ने उन्हें उठाया और बोले.
वत्स! उन दोनों विप्रों को मैंने ही भेजा था| तुम्हें भला मृत्यु का भय कहां| तुम तो मेरे ही समान हो|
तुम अजर-अमर, दुख रहित व अक्षय होकर मेरे गणनायक बनोगे|
तुममें मेरे ही समान बल होगा| तुम सदा मेरे पार्श्व भाग में स्थित रहोगे|
मेरी कृपा से जन्म, जरा और मृत्यु जैसे विकार तुम्हारे शरीर का संस्पर्श भी न कर पाएंगे|
ऐसा कहकर दयालु भगवान शिव ने अपने गले की कमल माला उतारकर नंदी के गले में डाल दी|
उस माला के पड़ते ही नंदी तीन नेत्रों व दस भुजओंवाले हो गए|
फिर भगवान शिव ने अपने गणाध्यक्ष के पद पर उनका अभिषेक किया|
नंदी शिवगणों में सर्वश्रेष्ठ हो गए।
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