गुरु गोरखनाथ जी ने खिचड़ी क्यों नहीं खाई, इसके पीछे एक प्रसिद्ध कथा जुड़ी हुई है। यह कथा मकर संक्रांति से भी जुड़ी हुई है, जब गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में प्रतिवर्ष "खिचड़ी मेला" लगता है

 गुरु गोरखनाथ जी ने खिचड़ी क्यों नहीं खाई, इसके पीछे एक प्रसिद्ध कथा जुड़ी हुई है। यह कथा मकर संक्रांति से भी जुड़ी हुई है, जब गोरखपुर के गोरखनाथ मंदिर में प्रतिवर्ष "खिचड़ी मेला" लगता है।

कथा का सारांश:

कहा जाता है कि एक बार गुरु गोरखनाथ जी अपने शिष्यों के साथ भ्रमण कर रहे थे। एक निर्धन वृद्ध महिला ने उनके लिए प्रेमपूर्वक खिचड़ी बनाई और उन्हें भोग लगाने के लिए बुलाया। लेकिन तभी कुछ परिस्थितियाँ बनीं, जिनके कारण गुरु गोरखनाथ जी ने वह खिचड़ी नहीं खाई और यह कहकर छोड़ दी कि "समय आने पर मैं इसे खाऊँगा।"

इसके पीछे एक और मान्यता यह है कि जब गुरु गोरखनाथ जी ने योग-साधना का मार्ग अपनाया, तब उन्होंने सांसारिक भोजन और भोग से स्वयं को अलग कर लिया। इसलिए, वे स्वयं खिचड़ी ग्रहण नहीं करते थे, लेकिन अपने भक्तों को इसका प्रसाद लेने के लिए प्रेरित करते थे।

गोरखपुर के खिचड़ी मेले की परंपरा:

गोरखपुर में गोरखनाथ मंदिर में हर साल मकर संक्रांति पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु आकर खिचड़ी चढ़ाते हैं। इस खिचड़ी को नेपाल नरेश की ओर से विशेष रूप से अर्पित किया जाता है, जो गुरु गोरखनाथ जी के नेपाल से जुड़े होने का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि गुरु गोरखनाथ जी आज भी अदृश्य रूप में इस खिचड़ी को स्वीकार करते हैं।

इस कथा का आध्यात्मिक संदेश:

गुरु गोरखनाथ जी की इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में संयम, साधना और त्याग का विशेष महत्व है। सांसारिक इच्छाओं से ऊपर उठकर आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ना ही सच्चा योग है।





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