जय माता दी
Sunny Nath Sharma
प्रथम नवरात्रि–मां शैलपुत्री
मां शैलपुत्री व्रत कथा–
मां शैलपुत्री पिछले जन्म में माता सती थी। भगवान शिव से विवाह के बाद जब उनको पता चला की उनके पिता दक्ष ने एक महायज्ञ का आयोजन किया है तो वह भी इस यज्ञ में जाने की जिद्द करने लगी।
भगवान शंकर ने उनको समझाया की बिन बुलाए हम यज्ञ में नही जा सकते है किंतु माता ने उनकी एक न सुनी और अपने पिता दक्ष के घर यज्ञ में सम्मालित होने चली गई।
परंतु जब माता यज्ञ में पहुंची तो वहां पर उनको बहुत ही तिरस्कार सहना पड़ा। उनकी माता के अतिरिक्त उनको किसी ने गले नहीं लगाया। पिता दक्ष ने भी उनका बहुत तिरस्कार करा तथा महादेव ने लिए भी कटु वचनों का प्रयोग करा।इन सब से दुखी होने पर माता सती ने अग्नि कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। इन्ही माता सती के फिर से राजा हिमाचल के वहां जन्म लिया था और वहां पर जन्म लेने के कारण ही इनका नाम शैलपुत्री पड़ा ।
मां का स्वरूप–
मां शैलपुत्री वृषभ पर सवारी करती है।इनके दाए हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित है। पार्वती व हेमवती भी इन्ही के नाम है।
नवरात्रि के प्रथम दिन इन्ही की पूजा होती है।
इसी दिन से साधक अपनी साधना प्रारंभ करते है।
माता की पूजा करने से मन निश्छल होता है और काम क्रोध आदि शत्रुओ पर विजय प्राप्त होती है।
मां शैलपुत्री का मंत्र -
ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
मां शैलपुत्री की आरती –
शैलपुत्री मां बैल पर सवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
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