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भारतवर्ष में कई भव्य मंदिरों का निर्माण हो रखा है,जैसे हमारे चार धाम है ऐसे ही उत्तराखंड देव भूमि में पंच केदार है।
शिव शंकर महाराज उत्तराखंड के आराध्य देव माने जाते है वह ही हिमालय से निकलने वाली अनेकों नदियों के स्वामी कहलाए जाते है।उत्तराखंड का अस्तित्व ही उनकी कृपा से है। तो आइए जानते है उत्तराखंड की पवित्र भूमि में स्थापित पंच केदारो के बारे में।
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ऐसा कहा जाता है की कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद पांडव अपने आप को दोषी महसूस कर रहे थे क्योंकि उन्होंने अपने सगे संबंधियों को युद्ध में मारा था। तब उन्हे पश्चाताप करने हेतु महादेव शिव शंकर के आशीर्वाद की आवश्कता थी,बल्कि महादेव उनसे नहीं मिलना चाहते थे। महादेव अपना रूप बदल कर उनसे दूर भागते रहे। उन्होंने केदारनाथ में अपने आप को बैल के रूप में परिवर्तित कर लिया था।
पांडवो द्वारा पहचान जाने पर उन्होंने केदारनाथ में केवल पीछे वाला भाग छोड़कर बाकी पूरे शरीर सहित धरती में समा गए थे। महादेव के शरीर के शेष चार भाग चार अलग अलग जगह पर फिर से प्राप्त हुए।
जिनमे मदमहेश्वर में नाभी,तुंगनाथ में भुजाए, रुद्रनाथ में मुख तथा कल्पेश्वर में केश पाए गए।इन्ही स्थलों को पंच केदार कहा जाता है ।
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प्रथम केदार केदारनाथ के नाम से विख्यात है।यह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है तथा ये द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इस मंदिर की महत्ता के कारण ही गढ़वाल का प्राचीन नाम केदारखंड था। यह मंदिर कत्यूरी निर्माण शैली का है।इस मंदिर के गर्भगृह में त्रिकोण आकृति के स्वंभू शिवलिंग की पूजा होती है।यहां पर सभामंडल में नवनाथो की मूर्तिया है । मंदिर के बाहर रक्षक देवता भैरव नाथ का भी मंदिर है। इसी मंदिर के निकट आदि शंकराचार्य की भी समाधि है।
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दूसरा केदार मदमहेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है। यह उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थापित है। पांडव शैली से निर्माणित इस शिव मंदिर में वर्षा ऋतु में ब्रह्मा कमल खिलते है। यहां शिव जी की नाभी की पूजा की जाती है।
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तीसरा केदार तुंगनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यह भी उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है।यहां पर आदि गुरु शंकराचार्य की एक लंबी मूर्ति स्थापित है।
यह दुनिया का सबसे ज्यादा ऊंचाई पर स्थापित शिव मंदिर है।यहां पर बाबा की भुजाओं की पूजा होती है।
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चौथा केदार रुद्रनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। यह चमोली जिले में स्थित है।ऐसी मान्यता है की मृत्यु के बाद मनुष्यो की आत्मा यहां पर स्थित वैतरणी नदी पार करके ही आगे जाती है। यह जगह ब्रह्मकमल के लिए काफी प्रसिद्ध है। यहां पर बाबा के रुद्र मुख का पूजन किया जाता है।
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पांचवा केदार कल्पेश्वर के नाम से प्रसिद्ध है।कहा जाता है की इसी स्थान पर अप्सरा उर्वशी तथा दुर्वासा ऋषि ने कल्पवृक्ष के नीचे बैठ कर तपस्या करी करी।यहां पर शिव शंकर महाराज की जटाओं की पूजा होती है।
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शीतकाल में केदारनाथ, मदमहेश्वर,तुंगनाथ तथा रुद्रनाथ के कपाट छः महीनों के लिए बंद हो जाते है। कहां जाता है की जब कपाट बंद करते है तो एक दिया जला कर छोड़ दिया जाता है और जब छः महीनों बाद फिर से कपाट खुलते है तो वह दिया जल रहा होता है। मान्यता है की उस वक्त जब कपाट बंद होते है तो स्वयं देवता गण बाबा की पूजा अर्चना करने हेतु पृथ्वी पर आते है।
किंतु कल्पेश्वर के द्वार साल भर खुले रहते है।
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