माँ भगवती की छठी महाविद्धा छिन्नमस्ता कवच
हुं बीजात्मिका देवी मुंण्डकर्तृधरापरा। हृदयं पातु सा देवी वर्णिनी डाकिनीयुता।।
अर्थ- वर्णिनी डाकिनी से योकत मुंणडकर्तृ को धारण करने वाली हूँ, बीजयुक्त महादेवी मेरे हर्दय की रक्षा करें।श्रीं ह्रीं हुं ऐं चैव देवी पूर्वस्यां पातु सर्वदा। सर्वांग में सदा पातु छिन्नमस्ता महाबला।।
अर्थ- श्रीं ह्रीं हुं ऐं बीजात्मिका देवी मेरी पूर्व दिशा में और महाबाला छिन्नमस्ता सदा मेरे सर्वांग की रक्षा करें।
बज्रवैरोचनिये हुं फट् बीजसमिन्वता। उत्तरस्यां तथागनो च वारुणे नैऋतेवतु।।
अर्थ- वज्रवैरोचनीये हुँ फट् इस बीजयुक्तादेवी उत्तर,अग्नि कोण,वरुण और नेत्रत्व दिशा में रक्षा करें।
इंद्राक्षी भैरवी चोवासितांगी च संहारिणी। सर्वदा पातु मां देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै।।
अर्थ - इन्द्राक्षी,भैरवी असितांगी और संहारिणी देवी मेरी अन्यान्य सब दिशाओं में सर्वदा रक्षा करे।
इदं कवचज्ञात्वा यो जपेछिन्मस्तकाम्।
न तस्य फलसिद्धिः स्यात्कल्पकोटिशतैरपि।।
अर्थ -इस कवच को जाने बिना जो पुरूष छिन्नमस्ता मंत्र को जपता है, करोडो कल्प में भी उसको मंत्र जप का फल प्रप्त नहीं होता।
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