उच्छिष्ट गणपति साधना GANPATI KI SADHANA GANESH CHUTRTHI SIDDH PARYOG

उच्छिष्ट गणपति साधना

गणपति जी एक सात्विक देवता सामान्य रूप से माने जाते हैं दक्षिण मार्ग और वैष्णव या वैदिक मार्ग में इन्हें परम सात्विक देवता माना जाता है तंत्र में यह सात्विक और तामसिक दोनों रूपों से पूजित होते हैं तंत्र में इनका एक रूप उच्छिष्ट गणपति का भी पूजित होता है जो अत्यंत तीब्र प्रभावकारी रूप होता है इस स्वरुप की पूजा बहुत शीघ्र और उत्तम सफलतादायक होती है इस पूजा में विभिन्न वस्तुओं अथवा वनस्पतियों से गणपति जी की मूर्ती बनाई जा सकती है जैसे श्वेतार्क नीम बाम्बी की मिटटी मोम आदि प्रस्तुत प्रयोग नीम की लकड़ी पर आधारित है जिससे विविध कामनाओं के अनुसार उपयोग किया जा सकता है 

विधि 

कड़वे नीम की जड़ से कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन अंगूठे के बराबर की गणेश जी की प्रतिमा बनाकर रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वयं लाल वस्त्र धारण कर लाल आसन पर पश्चिम मुख होकर सामने थाली में प्रतिमा को स्थापित कर साधना में सफलता की सदगुरुदेव से प्रार्थना कर संकल्प करें और ततपश्चात गणपति जी का ध्यान कर उनका पूजन लाल चन्दन अक्षत पुष्प के द्वारा पूजन करे और लाल चन्दन की ही माला से ५ माला मन्त्र जप करें सात दिनों तक ऐसे ही पूजन करे और आठवे दिन अर्थात अमावस्या को पञ्च मेवे से ५०० आहुतियाँ करें इससे मंत्र सिद्ध हो जाता है तब आप इनके विविध प्रयोगों को कर सकते हैं

ध्यान मन्त्र 
दंताभये चक्र वरौ दधानं कराग्रग्रम् स्वर्ण-घटं त्रि-नेत्रं 
धृताब्जयालिंगितमब्धि-पुत्र्या लक्ष्मी-गणेशं कनकाभमीडे

मंत्र- ॐ नमो हस्ति मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्ठाय स्वाहा.

विशेष
चूंकि यह साधना तंत्र साधना है अतः किसी योग्य गुरु के मार्गदर्शन में करना उत्तम होता है इसे करते समय सुरक्षा कवच अवश्य धारण करें साधना पूर्व आवश्यक मार्गदर्शन किसी योग्य से अवश्य लें विधि-विधान की जानकारी के साथ साधना करें और गणपति कवच का पाठ अवश्य करें !

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