कुत्ता पालने वाले लोगों के लिए शास्त्र आज्ञा:
शास्त्र अनुसार कुत्ता पालना एक अधर्म है. संतों में कहते हैं कि कुत्ता पाले सो कुत्ता, कुत्ता मारे सो कुत्ता
अंत समय हरि भजन न हो और अपना पालतू कुत्ता सामने देखने कि लालसा होने लगे तो अगला जन्म उस कुत्ता पालक को कुत्ता का ही मिलता है।
जिस घर में कुत्ता होता है वहां देवी देवता हवन और पितृ श्राद्ध तर्पण कार्य को स्वीकार नहीं करते। जिस घर में कुत्ता प्रवेश कर जाए जब वहां ही देव कार्य प्रभावहीन हो जाते हैं तो जब जिसने घर में ही कुत्ते को शरण दी हो तो उस का तो क्या ही कहना...
कुत्ता स्पर्श करने से जितने भी पुण्य अर्जित किए होते हैं
उस पुण्य का हरण चांडाल कर लेते हैं।
जब एक ब्राह्मण के घर उसकी संतान होती है तब देवराज इंद्र घबरा जाते हैं की अब ये बालक तप करेगा और पुण्य लोकों के लिए अपना मार्ग प्रशस्त करेगा। पर जिस ब्राह्मण के घर में कुत्ता आ जाए तब सब निर्भय हो जाते हैं।
कुत्ते का धर्म का स्वरूप होना स्वयं धर्म स्वरूप युधिष्ठिर को धर्मराज ने बताया था पर फिर भी युधिष्ठिर ने किसी भी समय कुत्ते को स्पर्श नहीं किया था।
सनातन धर्म अनुसार घर में बनने वाले भोजन पर गौ माता,
अग्नि देवता और कुत्ता का ग्रास निकालना बहुत आवश्यक है। इस से ही सिद्ध होता है की हम किसी से द्वेष नहीं रखते। पर आज कल गौ ग्रास और वैदिक धर्म निष्ठा वाले हवन को भूल कर केवल कुत्ता को ही भोजन देना तो सर्वथा अनुचित है।
जैसी संगत वैसी रंगत के हिसाब से भी जो कुत्ता पशु के पास रहता है वो भी उस जैसे ही भोंकता है, और जिस घर में साक्षात भगवती गौ माता का निवास हो तो वह सारे तीर्थों का वास होता है।
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