गुरु और सदगुरु भेद

गुरु और सदगुरु भेद

इन के मध्य कोई भेद है ही नही, वस्तुतः सदगुरु मूल रूप से प्रकट होने के स्थान पर एक व्यक्ति विशेष में स्वयं का तत्व जागृत कर देते हैं। जब किसी में यह तत्व जागृत होता ही तो उसमे और सदगुरु सदा शिव में कोई अंतर नही रहता। इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए कठोर तप भी असफल हो सकता है पर सदगुरु महाराज को कृपा कभी फेल नही होती।

जिस सदगुरु का इतना प्रताप है की वो साक्षात जगदम्बा महाशक्ति महामाई कालिका को अपनी शिष्या बना सकते हैं तो इस दुनिया में कोई और उनसे बड़ा हो ही नही सकता। महामाया को बड़ा छोटा नही कह सकते, शिव शक्ति में भेद करना मूर्खता है पर इन दोनो की लीला अपरम्पार है।

शास्त्रोक्त कथन अनुसार हरि गुरु संतों में कोई भेद ही नही है।
इनकी कृपा से मनुष्य परम कल्याण के पथ पर चलने हेतु सशक्त हो जाता है। साधना करना और सिद्धि प्राप्त कर के इस मृत्युलोक में  विचरण करना कोई बड़ी बात नहीं है। जिस ने उस परम तत्व शिव / दुर्गा कहो या श्यामा या कृष्ण या राम, सब एक ही हैं
सिद्धि के बल से किसी इंसान की बात जान लेना कोई बड़ी बात नहीं, ये तो भूत प्रेत भी कर लेते हैं, हरि के मन की बात जानना आसान नहीं।

मूल रूप से गुरु ही सदगुरु है जो शिष्य में भक्ति भाव को मजबूत करके उसका कल्याण करते हैं। किसी इंसान को गुरु बन के आपका कल्याण करने की जरूरत नही, ज्ञान बेचने वाले लोग नरक में भी स्थान नही पाते ये स्वयं महादेव के कथन हैं। पर जो गुरु आपको निस्वार्थ हो कर ज्ञान देता हो, आपको हर जगह मदद करता हो वो ही साक्षात सदा शिव हैं।



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