शीतला माता और मसानी माता दोनों ही हिंदू धर्म में पूजनीय देवी हैं और विभिन्न स्थानों पर इनकी पूजा की जाती है।

शीतला माता और मसानी माता दोनों ही हिंदू धर्म में पूजनीय देवी हैं और विभिन्न स्थानों पर इनकी पूजा की जाती है।

1. शीतला माता: शीतला माता को रोगों और विशेषकर त्वचा की बीमारियों से रक्षा करने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। उन्हें ठंडक और स्वास्थ्य का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा विशेष रूप से गर्मी और मौसमी बीमारियों से सुरक्षा के लिए की जाती है। शीतला माता की पूजा आमतौर पर नवमी तिथि को होती है, जिसे शीतला अष्टमी या शीतला नवमी भी कहा जाता है।



2. मसानी माता: मसानी माता, जिनको माता शाकम्भरी के रूप में भी पूजा जाता है, ग्रामीण इलाकों में खासकर उत्तर भारत में विशेष महत्व रखती हैं। मसानी माता को विशेष रूप से गांवों की सुरक्षा और कल्याण के लिए पूजा जाता है। उनका पूजा-अर्चना आमतौर पर बीमारियों और अन्य संकटों से मुक्ति के लिए की जाती है।



दोनों माताओं की पूजा का उद्देश्य समाज और व्यक्तियों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों और संकटों से बचाना होता है।

शीतला माता विभिन्न रूपों में पूजा जाती हैं, जो उनकी विभिन्न शक्तियों और विशेषताओं को दर्शाते हैं। प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं:

1. शीतला देवी: इस रूप में, शीतला माता को ठंडक और रोगों से सुरक्षा देने वाली देवी के रूप में पूजा जाता है। यहाँ उनकी छवि आमतौर पर शांत और सौम्य होती है, और उन्हें बर्तन में ठंडे जल, पंखा, और कुछ अन्य प्रतीकों के साथ दिखाया जाता है।


2. शीतला अष्टमी: इस रूप में, विशेष रूप से शीतला अष्टमी के दिन उनकी पूजा की जाती है। इस दिन उनके भक्त विशेष पूजा और व्रत करते हैं, और घर की सफाई कर उनकी पूजा करते हैं।


3. शीतला नवमी: कुछ स्थानों पर, शीतला माता को नवमी तिथि के दिन पूजा जाता है। इस दिन विशेष रूप से स्वास्थ्य और कल्याण की कामना की जाती है।


4. शीतला चतुर्दशी: इस दिन भी शीतला माता की पूजा होती है, खासकर रोगों और बीमारियों से सुरक्षा के लिए।



इन रूपों में, शीतला माता को आमतौर पर बहुत ही शांत और मातृस्वरूपा के रूप में पूजा जाता है, और उनकी पूजा से शीतलता, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना की जाती है।




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