गुरु गोरखनाथ और उनके दादा गुरु मच्छिंद्रनाथ (मसिन्द्रनाथ या मत्स्येंद्रनाथ) के संबंध में कई पौराणिक कथाएं और किंवदंतियां प्रचलित हैं। मच्छिंद्रनाथ नाथ संप्रदाय के आदिगुरु माने जाते हैं, और उन्होंने ही गुरु गोरखनाथ को दीक्षा दी थी। इस गुरु-शिष्य की परंपरा ने नाथ संप्रदाय की स्थापना और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

 गुरु गोरखनाथ और उनके दादा गुरु मच्छिंद्रनाथ (मसिन्द्रनाथ या मत्स्येंद्रनाथ) के संबंध में कई पौराणिक कथाएं और किंवदंतियां प्रचलित हैं। मच्छिंद्रनाथ नाथ संप्रदाय के आदिगुरु माने जाते हैं, और उन्होंने ही गुरु गोरखनाथ को दीक्षा दी थी। इस गुरु-शिष्य की परंपरा ने नाथ संप्रदाय की स्थापना और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


### मत्स्येंद्रनाथ (मच्छिंद्रनाथ) और गुरु गोरखनाथ का संबंध:


1. **गुरु-शिष्य संबंध**:

   - मत्स्येंद्रनाथ को नाथ संप्रदाय का प्रथम गुरु माना जाता है, जबकि गुरु गोरखनाथ उनके प्रमुख शिष्य थे। मत्स्येंद्रनाथ ने गुरु गोरखनाथ को योग, तंत्र, और साधना की गूढ़ विधियां सिखाई। गोरखनाथ ने अपने गुरु की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार किया और नाथ संप्रदाय को लोकप्रिय बनाया।

   - यह माना जाता है कि मत्स्येंद्रनाथ को शिवजी ने स्वयं तंत्र और योग की विद्या दी थी, जिसे उन्होंने आगे अपने शिष्यों को सिखाया, और गोरखनाथ उनमें से प्रमुख थे।


2. **मच्छिंद्रनाथ का जीवन**:

   - मत्स्येंद्रनाथ के बारे में यह कथा प्रचलित है कि वे एक बार समुद्र के अंदर गहरे ध्यान में लीन हो गए थे, जहाँ उन्होंने शिव और पार्वती के बीच हो रही गुप्त तांत्रिक शिक्षा को सुना। शिव ने उन्हें वरदान दिया कि वे योग और तंत्र की यह विद्या आगे अपने शिष्यों को सिखाएंगे।

   - मच्छिंद्रनाथ के नाम का अर्थ "मत्स्य" (मछली) से जुड़ा है, जो उनके जल में ध्यान की इस गाथा का प्रतीक है।


3. **गुरु गोरखनाथ की दीक्षा**:

   - यह माना जाता है कि गुरु गोरखनाथ एक दिव्य बालक थे, जिनका जन्म किसी विशेष उद्देश्य के लिए हुआ था। मत्स्येंद्रनाथ ने उन्हें पहचान कर उनकी दीक्षा की और उन्हें योग और तंत्र की गूढ़ शिक्षाएं दीं।

   - गोरखनाथ ने अपने गुरु के आदेशों का पालन करते हुए कठोर तपस्या और साधना की, और फिर उन्होंने नाथ संप्रदाय का विस्तार किया।


### गुरु गोरखनाथ और मच्छिंद्रनाथ के बीच संवाद:


1. **मच्छिंद्रनाथ की मोहमाया में फंसने की कथा**:

   - नाथ संप्रदाय की एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक समय मच्छिंद्रनाथ मोहमाया में फंस गए थे। कहा जाता है कि वे एक राज्य की रानी के प्रेम में पड़ गए और अपने योगी जीवन को भूलकर भोग विलास में लिप्त हो गए।

   - जब गोरखनाथ को यह पता चला, तो उन्होंने अपने गुरु को मोहमाया से निकालने का निर्णय लिया। गोरखनाथ ने राज्य में जाकर एक छोटे बच्चे का रूप धारण किया और मच्छिंद्रनाथ को उनकी योगी जीवनशैली और आध्यात्मिक उद्देश्य की याद दिलाई।

   - गोरखनाथ ने कई तरह की युक्तियों से अपने गुरु को यह समझाया कि यह संसार मोह-माया का जाल है, और उनका असली उद्देश्य आत्म-ज्ञान और योग साधना है। अंततः मच्छिंद्रनाथ को अपनी भूल का अहसास हुआ और वे पुनः योग साधना में लौट आए।


2. **गुरु की आज्ञा का पालन**:

   - गोरखनाथ ने हमेशा अपने गुरु की आज्ञा का पालन किया और उन्हें सर्वोच्च स्थान दिया। मत्स्येंद्रनाथ ने भी गोरखनाथ को तांत्रिक और योगिक विद्या में निपुण बनाया, जिससे वे नाथ संप्रदाय के प्रमुख गुरु बने।

   - यह भी कहा जाता है कि गुरु-शिष्य के बीच के इस संबंध ने न केवल आध्यात्मिक जागरण का मार्ग प्रशस्त किया, बल्कि तंत्र और योग की परंपराओं को भी सुदृढ़ किया।


### संवाद और गुरु-शिष्य परंपरा का महत्व:


नाथ संप्रदाय की परंपरा में गुरु-शिष्य संबंध अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। गुरु गोरखनाथ और मच्छिंद्रनाथ के बीच का संवाद इस परंपरा का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है, जो यह सिखाता है कि:


- **गुरु की महिमा**: गुरु को मार्गदर्शक और आध्यात्मिक शक्ति के स्रोत के रूप में देखा जाता है। गोरखनाथ ने अपने गुरु के प्रति अपार श्रद्धा रखी और उनके आदेश का पालन किया।

  

- **शिष्य का कर्तव्य**: शिष्य का कर्तव्य होता है कि वह अपने गुरु की शिक्षाओं को पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ ग्रहण करे और उसे अपने जीवन में उतारे। गोरखनाथ ने गुरु मच्छिंद्रनाथ की शिक्षाओं का न केवल स्वयं अनुसरण किया बल्कि उसे दुनिया में फैलाया।


गुरु गोरखनाथ और मच्छिंद्रनाथ का यह संवाद नाथ संप्रदाय की गहरी शिक्षाओं और तांत्रिक परंपराओं का प्रतीक है, जो आज भी नाथ संप्रदाय के अनुयायियों द्वारा सम्मानित और अनुकरण किया जाता है।



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