कुण्डलिनी या किसी भी प्रकार की साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक होता है। ये नियम साधक के मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध एवं सशक्त बनाते हैं, ताकि साधना का सही प्रभाव प्राप्त हो सके। यहाँ कुछ प्रमुख नियम और बातों का उल्लेख किया गया है जिन्हें साधना के दौरान ध्यान में रखना चाहिए:
### 1. **गुरु का मार्गदर्शन:**
- किसी भी साधना की शुरुआत करने से पहले एक योग्य गुरु से मार्गदर्शन अवश्य लें।
- गुरु साधक के आत्मिक और शारीरिक विकास के लिए सही मार्ग दिखाते हैं और कठिनाइयों में मदद करते हैं।
### 2. **आसन और स्थान का चयन:**
- साधना के लिए एक शांत, स्वच्छ और पवित्र स्थान चुनें।
- आसन (बैठने की स्थिति) स्थिर होनी चाहिए, जैसे कंबल या कपास का आसन।
- वही स्थान नियमित रूप से साधना के लिए उपयोग करें ताकि उस स्थान पर सकारात्मक ऊर्जा का संचय हो सके।
### 3. **समय का पालन:**
- साधना के लिए एक निश्चित समय का पालन करें। ब्रह्म मुहूर्त (सुबह 4-6 बजे) को सबसे उत्तम माना गया है।
- साधना का समय नियमित हो और हर दिन उसी समय पर साधना करने का प्रयास करें।
### 4. **आहार और आचरण:**
- सात्विक आहार का सेवन करें, जिसमें ताजे फल, सब्जियाँ, और हल्का भोजन शामिल हो।
- मांस, शराब, तम्बाकू और अत्यधिक तैलीय या मसालेदार भोजन से परहेज करें। यह मन और शरीर को शुद्ध रखने के लिए आवश्यक है।
- संयम और ब्रह्मचर्य का पालन करें। इन्द्रियों को नियंत्रित रखना साधक के लिए आवश्यक होता है।
### 5. **ध्यान और एकाग्रता:**
- साधना के दौरान मन को स्थिर रखना और सांसों पर ध्यान केंद्रित करना जरूरी है।
- अपने मन को एकाग्र रखने के लिए अपने इष्ट देवता या गुरु का ध्यान करें।
- कोई भी मंत्र या साधना बिना पूर्ण एकाग्रता और ध्यान के लाभकारी नहीं होती।
### 6. **सकारात्मक विचार और आचरण:**
- साधना के दौरान और उसके बाद भी अपने विचारों और आचरण को सकारात्मक और शुद्ध बनाए रखें।
- क्रोध, ईर्ष्या, भय, और अन्य नकारात्मक भावनाओं से दूर रहें।
### 7. **धैर्य और निरंतरता:**
- साधना में धैर्य रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है। साधना का प्रभाव धीरे-धीरे होता है, अतः त्वरित परिणाम की अपेक्षा न करें।
- नियमित साधना करें और किसी भी कारणवश इसे बीच में न छोड़ें। निरंतर अभ्यास से ही साधक को सिद्धि प्राप्त होती है।
### 8. **सांसों का ध्यान:**
- सांसों का ध्यान साधना का एक प्रमुख हिस्सा है। इसे **प्राणायाम** कहा जाता है।
- सांस की गति को नियंत्रित करते हुए ध्यान करना कुंडलिनी जागरण में सहायक होता है।
- गहरी और लंबी सांसों के साथ साधना करें, जिससे मन और शरीर में ऊर्जा का प्रवाह बढ़ सके।
### 9. **शारीरिक शुद्धि:**
- साधना से पहले शारीरिक शुद्धता का ध्यान रखें। स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
- यह शारीरिक शुद्धता मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धता को बढ़ाने में सहायक होती है।
### 10. **अनुभवों को साझा न करें:**
- साधना के दौरान प्राप्त होने वाले व्यक्तिगत अनुभवों को किसी के साथ साझा न करें। यह एक गुप्त और व्यक्तिगत प्रक्रिया है, जो साधक और उसकी आत्मा के बीच होती है।
### 11. **समर्पण और आस्था:**
- साधना के प्रति पूर्ण समर्पण और आस्था रखें। बिना श्रद्धा और विश्वास के साधना का पूर्ण लाभ प्राप्त नहीं किया जा सकता।
- अपने गुरु, इष्टदेव और साधना प्रक्रिया पर पूरी आस्था रखें।
### 12. **मंत्र का सही उच्चारण:**
- यदि मंत्र जाप कर रहे हैं तो उसके सही उच्चारण का ध्यान रखें।
- गलत उच्चारण साधना में बाधा उत्पन्न कर सकता है। इसलिए गुरु से मंत्र का सही उच्चारण सीखें।
इन नियमों का पालन करके साधक अपने साधना मार्ग पर स्थिर रह सकता है और धीरे-धीरे कुंडलिनी शक्ति को जागृत कर सकता है।
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