गुरु गोरखनाथ जी एक प्रमुख हिंदू संत थे, जिन्हें नेपाली परंपरा में गोरखनाथ और भारतीय परंपरा में गोरखनाथ या गोरखनाथ जी के रूप में जाना जाता है। वे नाथ सम्प्रदाय के एक महान सिद्ध थे और उन्हें हिंदू धर्म के महापुरुषों में गिना जाता है। उन्हें अनेक शक्तिशाली और आध्यात्मिक शक्तियों का संचारक माना जाता है। उनके शिष्य गोरखनाथ के नाम पर गोरखनाथ सम्प्रदाय का उद्भव हुआ, जो एक प्रमुख आध्यात्मिक सम्प्रदाय है। गोरखनाथ जी की जीवनी में कई कथाएं और लोक कथाएं हैं जो उनकी विचारधारा, आध्यात्मिक ज्ञान और साधना को दर्शाती हैं। उनका जन्म समय किसी निश्चित तिथि में स्थापित नहीं है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि उनका जन्म लगभग 11वीं या 12वीं सदी में हुआ था।
गुरु गोरखनाथ जी के गुरु का नाम महासिद्ध मत्स्येन्द्रनाथ (मत्स्येन्द्र) था। वे गोरखनाथ जी के आध्यात्मिक गुरु थे और उन्होंने उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान और साधना की शिक्षा दी। गोरखनाथ जी ने मत्स्येन्द्रनाथ से अनेक आध्यात्मिक शिक्षाएं और सिद्धियाँ प्राप्त की और अपने गुरु के उपदेशों का पालन किया। उनके गुरु का ज्ञान और मार्गदर्शन उन्हें आध्यात्मिक सफलता की ओर ले गया।
गुरु गोरखनाथ जी की तपस्या का विवरण विभिन्न पुराणों और लोककथाओं में मिलता है। उनकी तपस्या के कुछ अवलोकन करें:
1. **हरिद्वार में तप**: गोरखनाथ जी की तपस्या का प्रारंभ हरिद्वार में हुआ था। उन्होंने वहां बहुत लंबे समय तक तप किया और आध्यात्मिक सिद्धि प्राप्त की।
2. **हिमालय के तपोभूमि में**: गोरखनाथ जी ने हिमालय के गहरे वनों और अनुपम पर्वत श्रृंगों में भी तपस्या की। वहां उन्होंने अपने आत्मज्ञान को विकसित किया और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया।
3. **जीवन भर की साधना**: गोरखनाथ जी की तपस्या ने उन्हें संसार के ज्ञान को प्राप्त करने में मदद की। उन्होंने अपने जीवन के लगभग हर क्षण में साधना और तपस्या की।
4. **आध्यात्मिक साधना का पालन**: गोरखनाथ जी ने आध्यात्मिक साधना का पालन किया और उन्होंने आत्मज्ञान की प्राप्ति के लिए अत्यधिक प्रयत्न किया।
गोरखनाथ जी की तपस्या के माध्यम से उन्होंने आध्यात्मिक ऊर्जा को प्राप्त किया और अनंत ज्ञान को प्राप्त किया। उनकी तपस्या और साधना उन्हें हिंदू धर्म के आध्यात्मिक दर्शनों के महान सिद्ध में बदल दिया।
गोरख योग एक प्रमुख आध्यात्मिक प्रणाली थी, जो नाथ सम्प्रदाय के अनुयायियों द्वारा अपनाई जाती थी। यह योग क्रियाओं, आसनों, प्राणायाम, ध्यान, मन्त्र और आध्यात्मिक साधनाओं का समृद्ध मिश्रण है। गोरख योग का मुख्य उद्देश्य आत्मज्ञान, आत्मसमर्पण और आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त करना होता है।
गोरख योग विभिन्न प्रकार की आध्यात्मिक तकनीकों का समृद्ध मिश्रण है। इसमें शारीरिक और मानसिक अभ्यासों को समाहित किया जाता है जो शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति और आत्मज्ञान को प्राप्त करने में सहायक होते हैं।
गोरख योग के अंतर्गत कई प्रकार के उपाय और तकनीक शामिल होते हैं, जिनमें क्रिया योग, हठ योग, मन्त्र योग, लय योग, ध्यान आदि शामिल हैं। इन योगिक प्रयासों के माध्यम से व्यक्ति आत्मज्ञान और आत्मसाक्षात्कार की दिशा में अग्रसर होता है।
गोरख योग का उद्दीपन महासिद्ध गोरखनाथ जी द्वारा किया गया था, जिन्हें नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख माना जाता है। उन्होंने इस योग प्रणाली को अपनाकर आत्मसाक्षात्कार की ओर ले जाने के लिए लोगों को मार्गदर्शन किया।
नाथ सम्प्रदाय के अंतर्गत विभिन्न पंथ (सम्प्रदाय) हैं, जिनमें से 12 पंथ बहुत प्रसिद्ध हैं। ये 12 पंथ निम्नलिखित हैं:
1. **अदिनाथ पंथ**: इस पंथ के अनुयायी आदिनाथ को अपने मूल गुरु मानते हैं।
2. **उदयनाथ पंथ**: इस पंथ के अनुयायी उदयनाथ को अपने मूल गुरु मानते हैं।
3. **नागनाथ पंथ**: इस पंथ के अनुयायी नागनाथ को अपने मूल गुरु मानते हैं।
4. **गोरक्षनाथ पंथ**: इस पंथ के अनुयायी गोरखनाथ को अपने मूल गुरु मानते हैं।
5. **अचलनाथ पंथ**: इस पंथ के अनुयायी अचलनाथ को अपने मूल गुरु मानते हैं।
6. **जलेश्वरनाथ पंथ**: इस पंथ के अनुयायी जलेश्वरनाथ को अपने मूल गुरु मानते हैं।
7. **गजनान पंथ**: इस पंथ के अनुयायी गजनान को अपने मूल गुरु मानते हैं।
8. **कानिफन योग पंथ**: इस पंथ के अनुयायी कानिफन योग को अपने मूल गुरु मानते हैं।
9. **सर्वधर्म पंथ**: इस पंथ के अनुयायी सर्वधर्म को अपने मूल गुरु मानते हैं।
10. **मांदेवनाथ पंथ**: इस पंथ के अनुयायी मांदेवनाथ को अपने मूल गुरु मानते हैं।
11. **सिद्ध नाथ पंथ**: इस पंथ के अनुयायी सिद्धनाथ को अपने मूल गुरु मानते हैं।
12. **कपालिक पंथ**: इस पंथ के अनुयायी कपालिक को अपने मूल गुरु मानते हैं।
ये पंथ गोरखनाथ जी के आध्यात्मिक विचारों और गुरुशिष्य परम्पराओं पर आधारित हैं। प्रत्येक पंथ के अनुयायी अपने मूल गुरु को महानतम सिद्ध और आध्यात्मिक गुरु मानते हैं और उनकी शिक्षाओं का पालन करते हैं।
नाथ सम्प्रदाय में, गुरु नाथ का जन्म कई पुराणों और लोककथाओं में उल्लिखित है, लेकिन इसका निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है। नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख गुरु गोरखनाथ जी हैं, जिनका जन्म किसी निश्चित तिथि में स्थापित नहीं है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि उनका जन्म लगभग 11वीं या 12वीं सदी में हुआ था। गोरखनाथ जी को नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख आध्यात्मिक गुरु के रूप में माना जाता है, और उनके शिष्य नाथ सम्प्रदाय के अन्य महान सिद्ध भी हैं जैसे कि मत्स्येन्द्रनाथ, गोरखनाथ, जलंधरनाथ, चौरंगिनाथ, गजनान, कानीफान आदि। नाथ सम्प्रदाय का उद्भव गोरखनाथ जी के साथ हुआ और उनकी शिक्षाओं को अपनाकर इस सम्प्रदाय की परंपरा आगे बढ़ी। इसलिए, नाथ सम्प्रदाय का जन्म उन्हीं के साथ माना जाता है।
गोरखनाथ जी के धुना के बारे में बात करने के संदर्भ में, "धुना" का अर्थ है एक प्रकार का धूप-धूम्र यज्ञ जो प्राचीन संस्कृति में भारतीय धार्मिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण अंग था। यह एक प्रकार की आराधना होती थी, जिसमें विशेष प्रकार की धुन और धूप को देवता के समक्ष समर्पित किया जाता था।
गोरखनाथ जी के साधक संप्रदाय में, धुना अक्सर ध्यान और आध्यात्मिक साधना के दौरान आत्मीय या सांस्कृतिक गतिविधियों का हिस्सा होता था। इसका मुख्य उद्देश्य आत्मा के साथ संयोग और आध्यात्मिक उन्नति का संवाद बढ़ाना होता है।
गोरखनाथ जी के धुना में ध्यान, मंत्र जप, ध्यान, प्राणायाम और धार्मिक गाने-भजनों का समावेश होता था। ये सभी गतिविधियाँ साधक को आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में मदद करती हैं। इसके अलावा, यह साधकों को आत्मानुभूति का अनुभव करने में सहायक होता है और उन्हें आत्म-साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर करता है।
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