श्री गुरु गीता का सार पार्ट १
शिवजी भगवान जी ने माता पार्वती द्वारा बार बार पूछे जाने पर गुरु का स्वरूप उनको सुनाया,गुरु की महिमा का वर्णन किया
शिवजी भगवान जी ने कहा —
जो गुरु है वो ही शिव है,जो शिव है वो ही गुरु है।
दोनो में जो अंतर मानता है वो गुरु पत्नीगमन करने वाले के समान पापी है।श्री गुरुदेव का चरणामृत पाप रूप कीचड़ का सम्यक शोषण है,ज्ञानतेज का सम्यक उद्दीपक है और संसार सागर का सम्यक तारक है।
अज्ञान की जड़ को उखाड़ देने वाले,अनेक जन्मों के कर्मों को निवारने वाले,ज्ञान और वैराग्य को सिद्ध करने वाले श्री गुरुदेव के चरण अमृत का पान करना चाहिए।
अपने गुरुदेव के नाम का कीर्तन अनंत स्वरूप भगवान शिव का ही कीर्तन है।अपने गुरुदेव के नाम का चिंतन भी अनंतस्वरूप भगवान शिव का ही चिंतन है।
गुरुदेव ही साक्षात तारक ब्रह्मा है।
अर्थात सदा ही अपने गुरु का ध्यान करना चाहिए।
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